Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020)
क्या हिंदू बेटी को भी पिता की पैतृक संपत्ति में बेटों की तरह बराबर अधिकार मिलेगा — भले ही पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई हो या बाद में ? पिता की प्रॉपर्टी में बेटियों का क्या अधिकार है स्कूल लेकर कई सुप्रीम कोर्ट के फैसले दिए गए बहुत सारे फैसला जो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले हैं यानी सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है अब यह जमीन है अब इस जमीन पर अगर आप कहेंगे यह जमीन जो है पिता की जमीन है अब बेटी आकर दवा करें इस जमीन पर हम भी खेती करेंगे इस जमीन का फसल हमको भी चाहिए तो क्या यह संभव है यानी क्या यह पॉसिबल है ऐसा हो सकता है कि जो बेटी है वह पिता की जमीन पर आकर दवा कर दे अब सवाल यहां पर उठाता है कि देखे हमारा कानून क्या कहता है तो और पिता की प्रॉपर्टी में आखिरकार जो है बेटी का क्या अधिकार है कौन सा ऐसा कानून है तो देखें कानून जो है कानून वर्तमान में यानी इसको आप बोले की बेटी जो है यह है कॉपार्सनर” (सह-उत्तराधिकारी) का मतलब है कि वर्तमान में बेटी बेटी हो है ना बेटी हो या बेटा दोनों दोनों यहां पर बेटा हो या बेटी हो दोनों दोनों उत्तराधिकारी होंगे तो अब यह सवाल उठता है कि जब दोनों उत्तराधिकारी होंगे तो कानूनी तौर पर तो दोनों का अधिकार होगा तो यही तो कानून यानी एक समय ऐसा आया यानी जो है कि पिता की मृत्यु के बाद यानी उसे समय नियम कानून बना दिया गया पिता की मृत्यु के बाद यानी अगर पिता की मृत्यु जो है 2005 के बाद हुई है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में 2005 में संशोधन किया गया था। लेकिन अभी वर्तमान स्थिति क्या है बड़े पिता वसीयत किए हो नहीं किए हो लेकिन वर्तमान में अभी जो संपत्ति है ना यानी कोई भी अगर पैतृक संपत्ति हो या अर्जित संपत्ति हो तो जब जो व्यक्ति है उनके मृत्यु के बाद अब जिनका मृत्यु हो जाता है तो वह उनकी पत्नी का भी हक होगा उनके बेटे का भी हक होगा उनकी जो बेटियां हैं उनका भी हक होगा और उनकी मां का भी आंखों का इस बात के को आप समझ लें अगर मान लेते हैं कि आज आपके जो है ना पिता अगर जीवित यहां पर जो है नहीं है पिता की मृत्यु हो चुकी है तो आपकी जो मन यानी आपके पिता की पत्नी उनके कानूनी अधिकार होगा बेटे का जो एक तरह से कानूनी अधिकार होगा बेटियों का कानूनी अधिकार होगा और जो आपके पिता की मां है अगर वह जीवित है तो उनका भी कानूनी तौर पर अधिकार होगा उसे अधिकार से आप उसको वंचित नहीं कर सकते हैं सभी को बराबर का हक मिलेगा सभी को बराबर का तो यह है या नहीं पिता की प्रॉपर्टी में बेटियों का कानूनी अधिकार और यह अधिकार जो है समान अधिकार है यानी पिता के पास जो भी प्रॉपर्टी है वह सभी में कानूनी तौर पर जो अगर बेटा का जितना हक होगा उतना ही हक बेटी का भी मिलेगा इसमें किसी प्रकार का कोई भी दवा नहीं चलने वाला है अगर बेटी कल कर यह दावा कर दे कि हमें पिता की प्रॉपर्टी में हिस्सा चाहिए में हमें पिता की प्रॉपर्टी में हक चाहिए तो कानूनी तौर पर वह संपत्ति आप प्राप्त कर पाएंगे ठीक है यानी अगर वह आपका दावा करती है तो उसको हक देना पड़ेगा किसी भी हालत में देना पड़ेगा
अब बेटी भी उत्तराधिकारी है: जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा पिता की संपत्ति पर
अब पिता की प्रॉपर्टी में बेटियों को अधिकार नहीं देना पड़े इसके लिए आखिरकार बचने का कोई उपाय यानी यह अधिकार जो है ना वह नहीं देना पड़े या यानी नहीं देना पड़े और बेटी भी यह जो है ना यह दवा यहां पर नहीं कर सके कर सके तो ऐसा कोई कानून ऐसा कोई नियम बिल्कुल देखें है यह जो जमीन देख लेना यह एक तरह से पिता के नाम जमीन है पिता के नाम नाम जमीन है यानी पिता का यह एक तरह से अर्जित संपत्ति है अब है की बेटी का विवाह हो गया है ना बेटी जो है बेटी का विवाह हो चुका बेटी जो है यहां पर अपने ससुराल चली गई अब जो है बेटा को डर है कि हो सकता भविष्य में जो बहन है वह दावा कर दे तो हम क्या करेंगे तो बेटा जो है एक तरह से यह करवा सकता है कि पिता के पिता से पिता से वह क्या करवा लेंगे वसीयत करवा लेंगेवसीयत यानी अब उनके नाम जमीन है उनका सेल्फ एक्वायर प्रॉपर्टी है पिता को क्या करना वसीयत कर लेना अगर यह वसीयत कर लेंगे तो फिर किसी प्रकार का कोई भी दवा नहीं चलने वाला ठीक है लेकिन अगर यह वसीयत गलत तरीके से हो गया है तो फिर इस वसीयत को कोर्ट में चुनौती दिया जा सकता है जैसे क्या होता है की पैतृक संपत्ति है पैतृक संपत्ति में जो है एक तरह से सभी का समान अधिकार है तो उसको पिता कैसे वसीयत कर दिए तो उसे तरह का जो एक तरह से अगर पैतृक संपत्ति को वसीयत के द्वारा किसी को दिया गया है तो उसको आप कोर्ट में चुनौती जो है वह कर सकते हैं तो इसलिए एक बेटी यानी पिता की प्रॉपर्टी में जो बेटी का अधिकार है एक बेटी जो है या कुंवारी हो या शादीशुदा हो दोनों के केस में अपना जो हक है वह प्राप्त कर सकती है वह उनके कानूनी अधिकार है और वह वह अधिकार जो है वह प्राप्त कर सकती है
कोर्ट ने स्पष्ट किया:Vineeta Sharma बनाम Rakesh Sharma
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा बेटी को कॉपार्सनर का अधिकार जन्म से ही प्राप्त होता है, जैसे बेटे को होता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा 2005 का संशोधन पूर्व-लागू (Retrospective) प्रभाव से लागू होगा।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई हो या बाद में, बेटी को पूरा अधिकार मिलेगा।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा परिवार का बंटवारा अगर 2005 से पहले कानूनी रूप से हो चुका है, तभी बेटी का दावा नहीं बनता।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहाबेटी भी जन्म से ही पैतृक संपत्ति की सह-उत्तराधिकारी (coparcener) है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा विवाह या पिता की मृत्यु की तारीख से उसका अधिकार खत्म नहीं होता।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध परिवारों में क्या नियम हैं?
अब पिता की प्रॉपर्टी में बेटियों का अधिकार जो है उसमें अगर बात करें धर्म का भी यानी जो कानून है यानी वह मुस्लिम जो धर्म है मुस्लिम धर्म के लिए जो क्या नियम है मुस्लिम धर्म के लिए क्या नियम है यहां पर इसी जो है इसी के लिए क्या नियम है सिख सिख के लिए क्या नियम है बौद्ध जो परिवार है यह सभी परिवारों के लिए क्या नियम है और जो अभी यहां पर इससे पहले बात कर रहे थे वह कौन सा कानून है वह है हिंदू उत्तराधिकार यहां पर अधिनियम के तहत जो कानून है वह कानून यह कहता है कि पिता के संपत्ति में जो है ना बेटी का एक तरह से अधिकार है कानूनी अधिकार है वह भी बराबर का अधिकार लेकिन मुस्लिम धर्म में ईसाई धर्म में सिख बौद्ध यह इसमें आखिरकार क्या नियम है ठीक है तो देखें सबसे पहले जो मुस्लिम में लॉक की अगर बात करेंगे
मुस्लिम लॉ में क्या नियम हैं (Sharia Law):
- मुस्लिम लॉ में बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलता है, लेकिन बेटों से आधा।
- मुस्लिम लॉ में अगर एक बेटा और एक बेटी है, तो बेटा: 2/3 और बेटी: 1/3।
- ईसाई कानून: बेटी और बेटे को बराबर हिस्सा मिलता है (Indian Succession Act के अनुसार)।
पिता की संपत्ति में बेटी का दावा: सुप्रीम कोर्ट का 2020 का निर्णायक फैसला
पिता की प्रॉपर्टी में बेटियों का अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया जब उसकी बात करेंगे यहां पर तो देखें कि पहले यह जो जजमेंटल है किसके बीच में है तो वह है यहां पर विनीता शर्मा वर्सेस राकेश शर्मा पॉपुलर जजमेंटल है यहां पर शर्मा यानी यह जो फैसला है फैसला यह कब का है 2020 का जजमेंट है अब बात करेंगे कि इसमें आखिरकार देखें एक बात कहा गया और वह सबसे इंपॉर्टेंट महत्वपूर्ण बात है यानी बेटियों को अधिकार को लेकर ठीक है ना मैं पिता की मृत्यु पिता की मृत्यु उसको कोई लेना देना नहीं है यानि पहले हुआ बाद में हुआ इससे जो है कानूनी अधिकार पर कोई भी फर्क जो है वह नहीं पड़ेगा यानी कानूनी तौर पर इस संपत्ति के बारिश होने के लिए संपत्ति के उत्तराधिकारी होने के लिए यानी यह जो है नहीं कहा जा सकता है कि पिता की मृत्यु कब हुई है ठीक है तो इसलिए इस बात को यहां पर समझना भैया जरूरी है की बेटी कानूनी तौर पर उत्तराधिकार है और बेटी को कानूनी अधिकार मिलेगा अब यहां पर देखें इस जजमेंट के अगर केस नंबर की बात करें सबसे पहले केस नंबर की तो केस नंबर जो है वह है 32401 ऑफ 2018 तो यह जो जजमेंटल है यह जो फैसला है यानी यह बेटी को के अधिकार को लेकर है लेकिन एक सवाल अभी भी छोड़ कर चला गया कि आखिरकार जो है कुछ ऐसा कंडीशन है जहां पर बेटी को अधिकार नहीं मिलेगा और यह जजमेंट में लिखा हुआ है वह क्या है यह भी आप जरूर जान लीजिए कि आखिरकार इस जजमेंट में यह कह दिया गया देखें अगर बटवारा जो है बटवारा बटवारा जो है एक तरह से कानूनी रूप से कानूनी रूप से अगर 2005 के पहले हो चुका है पहले हो चुका है बटवारा जो है ना कानूनी रूप से मौखिक नहीं कानूनी रूप से 2005 के पहले हो चुका है तब जो है यहां पर एक लाइन स्पष्ट तरीके से कह दिया गया और यह लाइन आप मन में सेट कर ले की बेटी जो है बेटी दवा नहीं कर सकती दवा नहीं कर सकती यानी अगर कानूनी तरीके से बटवारा हो चुका सभी लोगों का अपने नाम पर जमीन प्रॉपर्टी कर चुके हैं तो अब अगर बेटी यह सोच रहे कि हम दवा कर ले तो वह दवा नहीं कर सकती है
सुप्रीम कोर्ट ने जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया अगर संपत्ति पैतृक या बिना वसीयत है, तो बेटी का हिस्सा बराबर है। अगर किसी ने उसे संपत्ति से वंचित किया है, तो वह कानूनी दावा कर सकती है।